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Full text of "Bhagavata Mahapurana 1 Skandha Churnika District Library"

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।. १ ||| ऽएवेग्सोङ्जयेणभोतृनभिभुखीरूयभागवतशास्तमार मते भैभिषारण्येरिष्णुकषनेशोनरादयःकषयःभीरिषाषय सहससय ||| 
' . . ||| सरसाध्येसभेरूतसेनःएकरापे्रसयःपातहुतहुवाणनयःसेतःआसीरनरोमरषण पुर सूतं सरूखथच्छुः भरषयञचु ह 
,. .: . || तखयासेतिहासपरणातिध्मशारूमाणिवयानियासःअन्येपुनयश्वरिडुःनानिसवाणिअधीतानिव्याख्यातानिच हैसोस्यतेषाभ्‌||| =. 
 . ` ||[|इगरहात तसरं यतःस्मिग्यस्यशिष्यस्यगुरवमयुल्यमपिबूयुः अतः शस्थेपुसं तत्‌|| 
|| ||सःवद्‌ यतःकलोजनाःअङसाःअस्यायुषः अस्य बुडयश्च श्रोतव्यानितु बहूनि 
, ˆ || | न्वर्‌ येमादयासं प्रसीदयि किंव रै सूत यद॑ग्न विष्णुः पसुरेयस्यर ||. 
^.  ||||भगृणन्सरः संसारान्‌ युच्यते यनास्स.भयसमपिबिभेमि ययारसंश्रयाः युनयःदशनादेवपुनंति गगोदकानितुसेबायुनति्‌| | 
 . `. ||| वंभूतस्यकङिमंजापहयशःशदिकापःकोवानथणुयात्‌ किच शरद्यवनोनःललयाकलाःदधत्‌ः तस्यउदुराणि ्‌ 
 , ||| मस्या यवनारकथाश्चबरूहि षयेतुउ्तसभ्योकस्यरिक्मेनविरृप्यामः यतुशृण्यतां रसज्ञानां परपदेस्वाद्‌ चं क्पटमारुषः१| || 
 : ` ||| गवान्‌ शवः बररभेणसहयाभिदीर्योणिङूनवार्‌ तानिवद नयुकर्वव्य्ाणोङुतेःवणावसशःस्यादन आहुः धाता 
ˆ ||| खातङ्यात्‌ षष्णुपदेगेुकमाःरीपैसभमिषेणररः रथायोरव्थावसाशाःपयमरपविशाःस्पअसिन्सप्थैव हश ई ः 
„ .. ||| पहि इतिअभिनेदेति अरीदुस्तरेरुरिततशच्छतानः धाक्रालंरशितः यथापुसौ सयुद्तरणेनाबिकः तहत्‌ वित धर्ष 
. - . ` ||रेश्रीरुणेअधुनाखवसरूपंपासेसतिधमः कंपति शरणे गतः त बूहि २३ इतिशरीभ्रडागवतदूणिकायाप्र ¦ 


ष दभाद्मरशनेसति भवति अतेःकषयःशुदावासफदेवेभक्तिङुर ति इदानी ह 
एवरेश्वरः स्थियायर्थदरिषिरिदिहरेतिसंज्ाः धते तेषीमध्येवा दवा, यं 
` “ ` || शिष्येरशेयति यथााघात्‌धूमःपदनिखभावः तस्पात्‌ अनिःएवंपस.संका शात्‌ रजोगुणशष्ठःतस्मात्‌ सखयणः | 
` ||| श्च अत्तलङणोषा्धीनिंभष्यमुतरोनरसुरय्‌ अतयुयुक्षवीयनयः भगवतं क्षमाय जग रज लापय 
 ||||प्रजेप्सवःसंतःपितृभूपादीस्‌ रजति वासुदेव परावैदाारूदेबपरामा बासदेवपरयोगाबार दब ५ 
` . ||| षरलानेवासरेवपरंपपेः बासदेव परोध्ीवासरेवपगगनिः एवं भूतो भगवान्‌ आलभाययाइद विभवं अयेससजतः || 
||पविषटसनूयणवानिवभामियरुषु भनिर्थथानथादरिःधूतेषुमानेव भाति स्यौ सादितेषु भूतेषु पधि सन्‌ षय 
|| सएवभगवा्‌ रेवनियड.नरादिषुमेस्वस्यतासदतारःतषुभदुरकतःसन्‌ सखरणेन सो सन्‌ पारयति ४. इपिपथभ॥ 
 . ||| तीयः . सूतउवाच ` संस्थञवतारकथाःशृणुत सएवभगवाम्‌ आरीषीरषश्पं महदरं कारपंचतन्पानैः स धतम्‌ एर 
 “ ||| रौगिवपचराभूतषोडशक्रंसोङभिसृक्षयाजगहे कोसौ भगवाद्‌ अंभसिशयानस्ययस्यना( प पद्या दा ०६८ ||| 


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` |||विष्यःअवयपैःसवरोङाःकस्पिनाःतत्‌ पगवनःविशुरं सपं सहख पीर ुजानने रडुतम्‌ सहस बु पणा सन सिरजञा| 
 ||बर्याुनयःपश्येति एतदषनानावताराणं कारणम्‌ यस्यशंशोबद्मानस्यअशोमरीच्यादिःननभ्वादयः सल्येते सएव मगाः 
शटिरूयंसमारंसर्गभाश्रिय भह्मणो भूलाबह्छवयेबतंचयारसपथमः विनी यसारर वपुः भृलारसा तगत +~ 


आओ-५. अद्या रीनाम्‌ 


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 . || सीधडु्ारनाभे येर्देया ्षो भूवा पारमहंस्य रशंयत्‌ न 


||| हीरतरान्‌ पृीयेनारदस्पदेवर्िलंगृहीलापचरवागमं तृषाम्‌ चतुरथेधप परायोयानरनारायणीभूखादुश्वरं तपश्च 
{६ र पंचमेकपिलोभूलाभारदिनामोबराह्मणायसास्यशास्पपोवाच षेअभ्रिपल्याअनसूयाया दचानेयःसभ्यपरदहादार || ' 
. : ||| सेरिभ्यःभलरियारभिवाम्‌ सपप्रशशिषल्यौ आकहयंय्ोपूलारेवगणैःसहस्वाय सुवेयन्व॑तर पारितवान्‌ अष्मंआ-||| ` 
|| | यैमास्यस्पंपृलाचाश्ुषमवतरेमहीमच्य नाविवैवश्वनं मसु भरोप्यअपात्‌ एकादशेक्मोभूलारवासराणायुदधिम 
||| तोसतोमंदरारिपएषेदध शदशेषन्वेतरिसनआयुद पशितवान्‌ भयोदशे मोहनी सूपभूखाअसुगान्‌ षच ५२ धलारेवार्‌||| .. . 
 ||||अमृतेअपाययत्‌ बतुरदशेदिही भूलानसैःरिरण्यफशिपुक्षमिषिदयाः पंचदशेवामनोभूतवाभिपादभूषियाज्राखदे|| || . 
||| नबलिरविरयिलास्वंररायदरी षोडशेषरफगमो भूलापएरूपिशतिवारंनिःक्ष्ोमहीअर्रेत्‌ सपदशे पराशरन्‌ सयव 
||| यायासो भूलाअर्पपज्ञाय्‌ पंसोर्लावेररोःशाखाःकतबार्‌ अशदशेदाशरथीरमोभूलासपुटनियहारीमिकम्रणिङ्‌ || : ` 
 . ^ ||| तवान्‌ एकोन पिशेपिशेचदृष्णिषुरामरुष्णौ भूलापुवःभारं अहर्‌ एकि शेरली संपरतेदैयमोहनायदुदनामारकट || 
 |||बभरिष्यति तरतःहापिशेकरे,अते ट्यु परायषुरजसुसस्फपिष्णु यशसःआह्मणानकस्किपविष्यति हैहिजाःहरैःऽ र 
` ||||याःअवतारम्यंथासरोवरान्‌सदसशक्षदपराहाःनिगेच्छंनि तथाफरषिमसुदेव मनुपु्रपजापतिपभूतयः हरेः अंशाः क 


||लाश्र्यः 1 अथेषोप्रयोजनपराह एतेस्व यरा पीडितंजगत्‌ भदति तराफखयंपि 


` ||| अवतःरदयजन्मयःमायंयातःपेत्‌सदःससंयादियुचये एतन्‌ पगवनोस्संमायारुणेःमहदादिषिः अह्मणिअन्ञैःकस्पिन || = ~ 


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॥ | = एषेरिगशरीरमपिजीयोपाथितयङव्यितमलि इमेस्धूरसृसलरपेज्ञनेनयदपरपिपिरेषव ||| इः ` 
` ३ || संमरोजीदहवमयति एष भगवतः जन्परमोणिकवयःवर्णयेनि सभगवान्‌ विभ्वं पविश्यविषयानुगरहनूजगवालनादि ||. = 


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` ` ¢ ` | ||पतियहत्वःसगणीतनत्‌ वरचैायसंनर्थयन्येते प्तिश्ीरे अपशब्दयुक्तेपिषासःप्योगेभगयय शःअस्तिचेत्‌ सएववागििसर्गःत || 
`. ` ||||मेवसाधकःशृण्वंतिगायेनि गृणेतिच रिनेष्कम्येमपिन्तान भक्तिहीनं पेत्‌ अयर्थन गोपते ुतनःरेश्परेनअपिनेदुःखस्पंका- 
|| सयंक्पंशोषेत अतहैमहाभागलंयथाथषीःअमितस्मात्‌ असखिलस्यवंधयुक्तयेभगवही ला रिस क्ये णस्पलाव्णीयं असय 
. || ह्रिविषिताप्‌ पथकर शपुसःमतिःकापिरिषयेस्थानेनरभेते यथावातेन आहतानीः तदत्‌ शिच भारवारिषुकाभ्येरूपणिर 
` . | ||आसंक्तस्यपुसमथमोर्थनदेवसम्यकपौरिङ्थयत'तवमहान्‌ अन्यायम्यतः सरक्त धेडतिसन्वानोजन 
|| |णेनिवारणनसन्यने विच क्षणःपुरषस्कं ५७ र अहतिनपरत्तिख भाव गुणैः 


१. । २२ ` ५ 9, म (€-0.0411165/\511॥1 (<. 5.2811/18॥ (10181811 0५ { 2151161 | 10 \/ (1911260 2८88) ॥ 4 प ¢ 
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शिबज्जखान्‌ सरोवरादीन्‌ 


न रसेटयादनोपवनानि सिषयातुविकिभायीय 


थ = बनि 


भार नेमिम्‌ एवंष्यायतःमेडदिहरिः आविष तनःआनंदमः सन्‌ आलानं परंचनापश्यम्‌ नतःपरगवत दपं पश्य ४ # 
५ |||सुसन्‌ सहसारथितोस्पि पुन स पानीऽपिनापश्यम्‌ एवं बने यतेतमा आकाशवारआह अस्मिनजयनिमा इङ || 


|| तभ्कारैगरखुकालःपरारुर भूत्‌ ननोमरेहःअपतत्‌ कसयनिशिषयिषोःबह्मणःसध्यं तउ न तेनसह्‌ अहं पाबिशय्‌ युनःकल्यारोर || 
| रंखड्भिच्छतःबह्यणःपणेभ्यःमरीव्यादयोखषयः अहदनतः सोहं शीहरेरसु यहात्‌ कविदपिअङदगतिःसयुदेबटताबीणा 
` ||| वारयन्‌ हरिकथागायमानभअद्छांड चमामि एवंगायतःपः शनं याति ेषथिष। पुतरणेह| | 
` |||रिभजनमेवपः दशःकिन्व हरिसेवथायथामनः शास्यति थायभादि रेन हैव्यासंः यु जूतड || 
वाचः . एवमाभाष्यवीणोरणयसूनाररीययो अहो अयंदेवषिःथन्यम्यतःवीणयाहःकीरविंगायन्‌ आतुरंजगवूशमयति ३ “इ 
|| ||तिपरथमेषश्ः६ शोनकडवास भारदैगतेसतिव्यासःकिमकरीत्‌ सतवा सरखलयाःपश्ियेनरेस्वेशम्यापासै 
आश्रमेवयासःआचम्योपंविष्ठःसन्‌मनः धयो तमःमनसिषथमं परुषंतन्यायाच अपश्यत्‌ ययामोहितोजीवःअन थ पाञ्ति || 
| वतःअधोक्षनेभक्तियोगेच अपश्यत्‌ एपत्‌ सरदेरखवा एवं अजानतःरोकस्यहिताय भागवतीं संहिता चकर यस्यविशूयमाणायं 
` ||| छषोपरमपूरुषे भक्तिस्यद्यतेपुसःशोकपोहजग पहा एवंसंहितो रला शकं अध्यापयामास शोनक्डवाच _ हैसूतसः 
||शक सर्वन्ोपेक्षकआद्यारमोपिदमो जहती संहितोकस्यहैतीः  सुतडवाच -आह्मारमाअपिसुनसण्टुरीभक्तिङु 


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६ ||| थाआनतेअग्वयामानेदश्वापणम्यएषःपुच्यता युव्यतामिति आह किंच यतम्दमाअस्यपिपुःसकाशादस््यामरशेकषित||| , 


|||तौरोरिमि तयास्य माताङूपीमारोदीत्‌ थैरालभिःभह्यङ्रंकोपितेतत्‌ तैषोसातुबंधरंददमि सूतऽाच ,. एव॑षष्यन्या|| 
|| |्येचतस्याःवचःश्ुलाधमौदयःश्रारुष्णश्चतो पशशेसः ततमकुदोभीयआह अहौ अनेनव्य्थगारवधःरनःअनौःस्यवधए || || 

|| | वशचेयातिति भी मस्यगपयाश्चयचनेश्ुखाअजंनस्यसुखे आली स्य शरी ए रीर ह ९५९. || 

| |बह्मणोनहतव्यदतिमयैवकथितेतखतिपारय उतचस्वपतिजोमम पाँचास्याः पी ससनस्य्‌। भय यथात ५; 1०, 
||| बाच अर्सुनपगवदभिपरायंज्ञालाअश्वथाम्मःसङे शं शिरोगतं मणिजहार ततोबईअश्वथा | 
 |||रात्‌रिःसारितवान्‌ बपनेदविणायानंस्थानानियोपणं तथा आद्यणायपरानोअयभेवधःनदैदिदडपि तनपोडवाशपय- 


||| सएवरोणःपजास्पेणासे स्यस्चीकपोभासे यतःबीरसुननत्‌यरेङरेपु्यदुःखयिषनार सि अपि यथाअहमृतवसा || ` 


, |सहशोकानोः संनःमुतवालानो ओध्ैदिकं चुः, उनिषथमेससमः० सूतउवाच्च अयतेपाडवारस्मिय रस्त ||| `` ` 


|| मृतानोडरकरानार्थरुष्णेनसहगेग जगुः ततःउदकंदलामिरापंब रलारसालाचप्थित्‌ कत इुगांारेपर पथा 
|मारिसहियुधिधिरेषऋषिभिः सहरूषणःकारस्यचगपि दशेयम्‌ सा यामास ततौ थिलायुधिधिरस्यश 

|ज्येसंसाध्यतिभिरभ्वमेधेपेमराजयाजयिलावय शः शतमन्यरिषरिश्ुबिसतायपाड वान्‌ एषवाउडवसाखय।कयुतः णायन 

|भिःूनितश्वशरीरूणाः हारकोगेतु रथमाशूरोह एतस्पिन्मवसरेधारतीउत्तर पातासत भा हैरषणरूणमोपाहि अर्थतसां 


६1. 


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यसंददशरः मोद्य अभ्नियाति सतुमोकमद्हस परंमेगभमापतपु . सतवा उवाचः `इतितस्यादानेषचःश्चलाइदं 
अपाव भूनरंकतं स्वोपरिआपततःपेचशरन्‌ भरष्य भस्पाणिभाददुः भक्तषसलः 
शरीरष्णेआश्वरन ततःजद्यास्िनियुकैःपोडबादिभिः 
रभावसरशरंभव्ययंयोगिनामपिदुेयंलीनमस्ये रष्णायवासु ५ 
थाक्सेनरदारेवकालयासकूदिमोकिता वेथाअहन || || ` 
नशाश्वत्‌ ||| 


| तेनमःहैरूष्णला अनाटिति 

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| आहू भु १९२ हु 

तिव नान रणायतीणकरमोणिव रेजत रति एव पूतस्यतचितयेशनगायंनिव 


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|| चाशदखधैयपा हमकपार मः सुद > ( खयबुजातूषिना गा पनाअच्यजा आश्रयोनास्ति ।स्व-अ॥ | 9 
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| पवेतोनाररोधोम्योयासः खहरण्वाभरशजःपर एरापःउसि र 
||करअनययकसयरिष्यःहीषयंदआगतभान्यपषर तप्याय ल पास य वथधोयनाधयोःसयः 
_- |||षनलतमीपेभसोनान परय अपव आहत सी 
` |||सूतनीयुष्पङनेबहन शात पासा भवताद्य ततस्र ण्ह सह ध 

| प ५ 


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सोषिपत्‌ नसयादिददेवाधानेपनयेऽन|| 
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अच्युतेमनःस्याप्यवांचीतननामदतयन्‌ यभ्योगी || 
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` ~ || [बयःददेमिसक्षतीमायां अनुसतवान्‌ कवि योगिनम्यसरअमरबुद्यापश्येनि कच यद्रजगतुखीलया सजति अवति अति ए 
` ||| नतमसज्नपे चि यदादुशराजानः पदनि तदजगवेक्षेमाययशूपाणिधते सएवायंश्रीरुष्णःकिर अहो यदोपकुरधन्य मथु 

= „ . |च यस्पात्‌रुष्णःस्वजन्यनागमनेनय पूजयति तच अरौहरकापिथन्या यतःयस्याप्रनाःस्मितावरोर पगवतपश्यति ||| ` 

1 अपिच चैयारीन्पमथ्यवीये शल्देन आनीताःरुश्मिण्यादयःस्मियः धन्याःयतभ्तासा गृहात्‌ मगवाचूनग च्छति एवग्दतीस््। | 


स्यादिपियलाबाणपनयरंथन्‌ रामृदगकेयादयभेरुःपथापासारारूलाःकुरस्मियःधरुणोदुसमेःवदषुःतराभरौनः उतजय | 


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४ सोकःविषयिणंफयतेयतोऽबुधः सिदत 1 नयु 
व ज्यतेऽतियत्‌नभूराःस्मियःस्पेणमेनिरे अहकारघरसय कचज्ञ पुथामन्येषेतइत्‌ ३९ . इ 4. 
 . | |ौच्ड क हेसूतअन्वथाम्तासुक्तेनव्रह्मास्वेणयीडितःउतरायाःगभःसगवतारुष्णेन जीत तस्यषशषितःजन्धकस 
गेनम्‌ हस्प्परगहेयानंयनेसीषितभरकेनि+ = ` 


(«-0.001168)/ 31111 |९.3.78/1181 | 10 (30५, 1 [0151161 | 1081 \(8/8/185]. 1411260 0\/ 6810011 ॥ 


क चूसुधिषिरपितृदत पजाःपाउयामास नस्यमुङुदमनसःसंपद्‌ः 


| तिथनामि तथायस्वशकसानंयथा अदत्‌ वसर्ैभरोतुभिच्छापि 


||| शसा कठेःमिय॒हीना 


कन ५, ४ 
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|| युःकाकयतःपेत्‌ङ्ञालाबिदुरुधृतराषभभाषत हेपतरष्गहात्‌ शघमिर्गम्यतो अयं ष क व. इ # ¢ “ 
||पिक्रियाभरियः्रणेरपिनयनकारेनअयंजनःपाणादिभिियुज्यते तपित षादृसडलुषाः हायश्वापिगतरहश अस्य 


इस्पि ध भगवःतंभभि|| ` 
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`“ . ||| तरह हैरानर्‌ शकंमाङ्रः यत्दनगन्‌ कारापीनेइमेरोसाः वाकं यावः संतः रुरायविवहति 
||| ईषान यथाकासेपसकरणोवोगसयेगीसतीरचछयाभवतनदत नीच्या वमिभ 


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च श ६० 10 4 १ न ~. ¢+ ५ ६ भ ॐ ` व ॐ क ७ - ५ ५ 5५ ५ . \ 0 [4 - ४ 9 १२ ‡ ४. = 
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||पिसस्युःससेवपित्पसुषस्यमेऽपराधंेर मनपरुषोसमे 
“ ||| सोहेरथीतरेवधरुमएवशरःसएवरथःतएवरयाः एवस 


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५ 


+ तःटिमिजयेनूपलिगथरेगोभिशनपदाधरनेररिमिगृहीतबान्‌ शीनङृडवाच दैसूतपराक्षनूरुस्हनोःकरिनिनयाहयः|||| ङः ` . ` 
. १६ || परागोअहनत्‌ सम्कमृदरःइररूष्णकथाश्रयमृसि चेत्‌ तरि स्थय व प यैःथाआयुःनश्यतिअस्पाकंसन ||| = 
` ` |||पयललोपिहरिकुयाश्ररणाथएय अस्पिनूसमेप्रयुःआहतःअनमसत्रसमापिषयतंकोपिजनःनध्ियत अनेनश्रगवक्था || _ 
; : ||||अरवणावका शसूमितिः अरोहरिरुथापानं विना अस्यभस्पायुषःजनस्य आयुःरामीनिरया दिवा क्मभिःन श्यति प ; 
` . |||तदरिकिथोङ्थय . सूतउवाच यदास्वदेशेकरिषविष्ठसशराय पदारथ भास्थायधुशरलासेनयादतःपर क्षित्‌ || 
` ` ||रिप्विजियार्थपुराप्‌ निगतिसम्‌ भद्रपमेतुमारं भारतं वषंरसरार्‌ युङश्चरिजियकरंजगुरे तसतयजनैगीौ यानंशखपवेषा 
`, ||| यशःअश्वथाम्मोऽरूगतःस्वरक्षणंरणणिपा्थानोके शपेभशषित्शरुवासंते-सनतेष्यन्थनानियासािहारध्वदय किदपाड|| 
` . -[वेषुशरुष्णस्यसारथ्यारिरूपाणि शृण्वन्‌ भिष्णीश्वरणारविदेभर्भिरूनवार्‌ तदाएव रमेमानस्यराजञसतःयहृत्तातु य |||. 
` ||| एतस्िनूरारेएकेतपराचरन्‌ इषस्पथरः धम गोरा पृ श्वीरुदतीआरक्षय उवाच दैषदेपेअनामयरबित्‌ यतःम्ानवद्‌ || 
. |||नाअसिअनोभवतीअंतरा धिआरक्षये कित्व पदन्यूनं एकपारेमातथाभूयः भोश्यमाणा आदान वा शोचि व 
क | 


५९|| असुर द्तयज्ञ भागावृदेवारं शोरमि रवि १तभिःअडष्यपाणाःस्वियः पितृभिररक्ष्यमाणानूबाज सुरः ० 
||| देस्थितासरस्वती गकदि व धून वाजारक्मौदयधभमिरतेजीवणोङंवा पूभारमा शाथ छतायतारस्यहू षर त 
||नतेःवाशोचसिकषिमू हैवसुधरेयनलकशता'भनकारणङुथय . भर्युवाच्‌ ₹थर यपा (तत्‌ `, ९५०१ ||| 
| स्याश्रयेणलंचतुष्यार्‌ आसीःयस्पिन्‌ भगवति सयं शोेदयाक्षानिस्यागः संनोषजेवम्‌ शमोदमस्तपःसाम्यनितेक्ाप्‌ || 


र 


४ 0-0.20165\ 3111 ।<.5.781118 | 10/8/1817 धा 0181161 [10781 ४/व 81185. 01011760 0\/ ९७870नीं 
^ र > > कक श व = क ध ^ 4 क ~ क = 


@ व्र ् ~ | > क क क कके > क ^ वितत ¬ 


. £ निवासेनरहितेपाप्मनाफसिनाअययोकितेचरोके शोचामि तथा आत्मानं भवेपेपिवनरसीनरेवान्‌ साधून बणोप्‌ 


५ 2 1 


सनित र | 


शोचामि कियस्याःपसादंबह्यार्योवा्छंनि सार्वः सगृहं कमसयनंहिखायसाद पदे भजनेतस्य भगेवत्‌श्रामसदेभ्रि || 
हितोअतएवगवितामाय॑भ्यक्तवान्‌ श्वि यःयटुषुअतीयपू परारंजहार एवं मूतस्यमगयनःविरहंकवासरेत एवे पराचीस 
रस्वतीलीरि पृथ्वीपयोःकथयनीः 1 ३९ ` व ६५ सूतउबा त्रसं 
रखद्यागजापरीक्षित्‌ द्डहस्तसृपपि हु धरमूद्रतथापयात्‌ सू्यतंन्बेतं एकपाद श्रूदताडित चषनथाभूटपदाहतो साशरुषद्‌ 
||नोरृणभिच्छतीगाचरास्वयरथारूटःभूतकाुकभ्सन्‌ गं भीरबाचापपच्छ अस्मिम्‌ मच्छरणेलोकेवला तृदीनानूरंभि एवं 
| 1 कर्मणाभूदरःवंकोऽभिरि्वि अर्जुनेन सर्रीरूणो अंतहितेसति निर पराधानुरहसि प्रह्रभि अतस्तंवधम || 
, ||ह (१ पनतः षं प्याह हैरषभ्वेतं वणं पारैन्यूनः सं रोऽसि फथ्िरैषःस एृषसूपेण अस्यान्‌ सेरयन्‌ वर्तसेकिम्‌ ईच पांडवर|| 
 “ ||||क्षितेभरूतसेतेअभ्रूणिषिनारतरेषा पाणिनामश्रूणिनासुपतंति लमपि शोर पङुरु अस्परापृशूद्ात्‌ ते पयमपयतुगपरयाहः 
. || |दैवसखंखानोमयि शस्तरिसतिलंमारोदाः ङ्त अदोथस्यरन्येद्शेःपजाःनस्यते तस्यराक्तःकयायुमोग्यपरलोकान || ` 
श्यति ङि रीनानादुःखहरणमेवरजापरोधर्मःअतपएनंभूरेवधिष्यामि हदषव फदाय्‌ र.भरण्वत्‌पंभस्पकीपिनाशङ्‌ || , ` “ 
यि 

चसादुमणगोटमत वपि ुरनमनौमयतमादिायदै || ` ` 


` || ||तरिंवद्‌ किंच निरपराधभूतेषुअपराधक्वतुःदेषस्यापि 
||| : धर्यउवात्रः एतदपोडेयानोयुक्तमानभयपः। 


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भाप व मसावादिभिःषयबिमोहिताः अतहैगजव्‌ खंसवबुद्ाटुःसखरानारेविचास्य एवंरकैसतिगनमोहुःसन्‌निश्रियउवाच | ॥ § 
१९ जोषाच खंदषरूषीधमेासि यतःखंघानरजानन्नपिनसूचयरेवरूपंयमंबयीषि सजने रोप त 
` .  |||पिषवतिअथवाभगवन्परायायाः्गनिरगोचरा अतनोक्तवान्‌ रिति तपःशोचंरयासलयंरतिवलारतवपादास्तचध्येभयमीशः || ` - ` 
` . |||स्पयसेगमरेःअयोभगनाइगनीसयरूपःएरःएवरवैरितःतमपिअधमःक रिष िच्छति विच इयंउरुभराकता भगवतः 
ताचभूःमोमूदाभो श्येती निरतो शचि इनिधर्ममहीच सां खथिलाकणिह परात्‌ सड आदरे एवाह शंपरीकिर्तदछायूप 
विनहमिहायरलि.तञ्रणयोःपतितः पनःतेतथाविषं रघादयालुः सजाने अवधीत्‌ आह्व रजौक्च हैक्येक्दाजरे||| . 
||तीःतवमत्तभयंनासि परंवयामहेशैेनवतितययम्‌ यतःखंअयमेवंधुरभि तदेबाह तिसनित 


35 तन्ना ८२11 


` , ||रकःकरिःन्यवसत्‌अतरेषलभि्छःपुरुषभ्त्ा पभोषत जाए देत गतःसःवहा धनं 
||स पाराशर सराजाधमणटतंसिंहासनेआभिखअयुनागजाद्दयेवषः 


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$. ||मेसपदशः१०. सूतउवाद  युरधित्‌ 


भा । तगृगान असुगतःसन्‌ शरंतःुधितःरषितःरं अपश्यद्‌ अस्याशरपर वेश न |च 


` " १५ ||| शमीकसुनिरष्लाउदं अयाचत ततःभगाषसकारःरानाआासानं अवज्ञागभिवमसामसरयुनम्सनु कोपन गजाम ||| , ., 
॥ पेःसरंषयूनसपैषरुष्कोल्यानिधायपुरंयये यतभ्भस्यचसेःसमाधिःसयःपिश्यावाइतिभिजासयासपस्थापितःनतनस्यषु ||| . 
` ||| बभ्यगीनामबासकैःसहकीइन्‌ सन्‌रा्ोऽपराधंशुलाबासक्मध्यैसद भयवीत्‌ अहोरज्ञोभयैःअयम्‌ कादनामिष चि ||| 


कित अद्यकोपोथितोभनिःयेसपुरगज्यारिकंदहतुरथिंतयं स 

| | ने अथरूष्णापिसेवोअधिकंगन्यमासःगजाभ्गयञ्रणनिरातायागगायोप्रायोपवे शकत वाच्‌ तचसुक्तसमस्वसंगः 
दाधिरष्योएतस्विनेते तदशनाथसशिष्याःयुनयःपापापतेचअभ्रिःवमिषभव्यवनःशरदान्‌ अरिषनेपिभृयुःअंगिराः||| ` 
पराशरः विश्वाभिच्ःपरशरमःउतथ्यः इदपमद्‌ःरथ्पवाहमेधानिधिःदेवरः आषशटिषेणःभारहजणीतपःपियलाद्ये|| 

मेयःओरैःकवषःअगल्तिःष्यासःनारटःअन्येचरजषिदेवर्षिबह्षयुःएनानसवोय्‌ भभ्यच्यैराजाषदरे सतफसौ पवि |||. ` 


॥ भ श = ५ 
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(| = प] ॥ >= ११ तिथ ^ ~व 3 वि ( ४ †$; 5६4 क ४ 
. [1 4 (८ ये व ~ .१ १.५ त * ध कः # ५५ = । च र ४: [9 ४. । ४ 3 2 ; 
(0 ©0-0.0001169/ 91111 1८.8.18 । 10181197) 60५ 1 जालं [0७४ ५/ ५ 1 4 

9 8.०2 च छ + २. द न्क | ७ ~ ५; 2 9 + ह 7 [ऋ ०. (1 +न ४ 


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भाप प्रय पाणेश्वयस्छमेतरिचारयत कमेषु यागयोगनपोदानादिभिविवरपानैषुसर्फ यदच्छया गं पयरयूस्नीवाेरतःअ ९ 
१६. ||| वधूतवैषःनिजराभवुषटव्यासंपु्रःततरषासः तंषोडश वरपसङुमार पादायषयवंचारनेमेऽसतनासंतृल्यक्णसः्वा 
। कंबुरेनिगूदजयु पृथुवक्षसंदिगंबरं वकरपिकीणे$शं परंबवाईस्वमरो्तमाभं ्यार्भर व 
` ˆ. |||णन्ञायुनयःआसनेभ्यःपरयुचिताःततप्प्रीक्षिन्‌ आगतायतस्यै शिरसासपयोमाजहार न स सुः 
` (||तःसन्‌ पहासनेरपविवेश सदेवर्षिराजर्षिबह्यिसंपेः सं रतः चदददव्यरोचत ततस्पशिन्‌ आसान तसू लनिरिस|| ` 

` . ||||तयागिर भन्वप्च्छत्‌ अरो वयं ्षमबेधवःपवरिःकृपयायोग्याःछृताःयेषोवःस्मरणाच्‌एसागृहाःसयः रः श्या ` 
 . |||रशनारिभिःशखतीनियक्तव्यम्‌ ५ योगिन्‌ तेसानिषथ्यात्‌ युंसोमहापापन्यपिसघःनश्यति विष्णसानिष्याद्‌ वा|| = 
` . ||| यथा पांडवानोभियःरूष्णःतयोरयथेन हयस्य पतिःखसु अन्यथामियमाणानानः दान ङुथस्याव्‌ अतच || 
|| शरुलोषृच्छपि इहध्रियमाणस्ययर्थयच्छोतव्यंजाय्यस्प्व्यभजनीयंब्‌ (क || 
|| हाश्रमिणोगृहेषुगोरोहनसरुसपिनर ष्यते  सूतउवाच - रत्ाएवे एषम मगायू रूपया त १ || ` 
(1) धेचू्िंकायोर्कोनविंशोऽध्यायः१९ ५,  अयस्कभःसमात | || 
` || शष भवतु ॥ ६ ` ।॥४। , ५8 ` पसा ` वभा ` चथ ` ॥॥ ॥७।॥ ॥९७॥ _ ५ | 
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